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मार्च 16, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

डरो नहीं ! मेरी कविता तुम्हारे खिलाफ नहीं है

डरो नहीं ! मेरी कविता तुम्हारे खिलाफ नहीं है आवेश में अक्सर धमकियों भरे ख़त हम भी लिखते हैं किसी आतंकवादी समूह की तरह नहीं  मिट्टी में बंद बारूदी सुरंग की तरह  जिन्दगी की जंग लड़ते-लड़ते बंद मुट्ठी में भीगे हुए ख़त अचानक स्याह हो जाते हैं  उस दोराहे पर जहाँ पहलवानछाप बीड़ी का धुवां मेरी धमनियों में फैल जाता है और मुझे सांस लेने में दिक्कत होती है मैं कहता हूँ डाक्टर मुझे दिक्कत हो रही है  तुम कहते हो सब ठीक हो जाएगा  जहाँ मेरे बच्चे को खून की उल्टियाँ होती हैं  और मेरी मासूम बेटी किसी गुमनाम सिपाही की माँ बनती है तुम कहते हो सब ठीक हो जाएगा  जब मैंने हथियार उठाया तब मेरी उम्र बहुत छोटी थी  अक्सर हमें बताया जाता था हमने बहुत दुःख झेला है  अपनी जमीन से बेघर होने से पहले हम सुखी थे  बीच-बीच में तुम्हारे मध्यस्थ आते रहे हैं  पर उन्होंने समझौते के बदले हमें दुबारा बिखेर दिया  जिस कलम ने हमारे विकास का सपना लिखा था  समय के साथ उसकी स्याही सूख गई  हमारे लिए लिखवाए गए विकास सेना की बंदूकों में कैद हो गए  क्या आप जानत...