भारतीय संस्कृति, समाज और सामाजिक बहिष्करण/ डॉ. कर्मानंद आर्य/ Dr. Karmanand Arya
संस्कृति बनाम लोक संस्कृति : भारतीय संस्कृति ने अपनी एक विकास – यात्रा तय की है , जिसमें वैचारिकता , जीवन-संघर्ष , विद्रोह , आक्रोश , नकार , प्रेम , सांस्कृतिक छदम , राजनीतिक प्रपंच , वर्ण- विद्वेष , जाति के सवाल , साहित्यिक छल आदि विषय बार – बार दस्तक देते हैं. वस्तुतः आजतक जिसे भारतीय संस्कृति कहा जाता रहा है वह एक ख़ास समुदाय और जाति विशेष की संस्कृति है. लोक और शिष्ट का भेद पहले से ही होता आया है. शोषकों की एक लयबद्ध संस्कृति को अभी तक भारतीय संस्कृति कहकर प्रचार-प्रसार किया जाता रहा है. यदि संस्कृति का ठीक से अध्ययन किया जाए तो पता चलेगा कि उसमें से भारत की सत्तर प्रतिशत जनता का हिस्सा गायब है. मूलतः यह संस्कृति नहीं अपितु विकृति है. यह भारतीय संस्कृति नहीं अपितु संस्कृत और ब्राह्मणों की संस्कृति है. शोषण, दमन, छुआछूत, जातिवाद, क्षेत्रवाद पर आधारित इस संस्कृति को मूलतः ब्राह्मण संस्कृति तो कहा जा सकता है भारतीय संस्कृति नहीं. किसी देश की संस्कृति तो वहां के निवासियों का आइना होती है. समाज, साहित्य, कला, जीवन में जिसे भारतीय संस्कृति कहा...