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मार्च 8, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारतीय संस्कृति, समाज और सामाजिक बहिष्करण/ डॉ. कर्मानंद आर्य/ Dr. Karmanand Arya

संस्कृति बनाम लोक संस्कृति : भारतीय संस्कृति ने अपनी एक विकास – यात्रा तय की है , जिसमें वैचारिकता , जीवन-संघर्ष , विद्रोह , आक्रोश ,   नकार ,   प्रेम ,   सांस्कृतिक छदम ,   राजनीतिक प्रपंच , वर्ण- विद्वेष ,   जाति के सवाल , साहित्यिक छल आदि विषय बार – बार दस्तक देते हैं. वस्तुतः आजतक जिसे भारतीय संस्कृति कहा जाता रहा है वह एक ख़ास समुदाय और जाति विशेष की संस्कृति है. लोक और शिष्ट का भेद पहले से ही होता आया है. शोषकों की एक लयबद्ध संस्कृति को अभी तक भारतीय संस्कृति कहकर प्रचार-प्रसार किया जाता रहा है. यदि संस्कृति का ठीक से अध्ययन किया जाए तो पता चलेगा कि उसमें से भारत की सत्तर प्रतिशत जनता का हिस्सा गायब है. मूलतः यह संस्कृति नहीं अपितु विकृति है. यह भारतीय संस्कृति नहीं अपितु संस्कृत और ब्राह्मणों की संस्कृति है. शोषण, दमन, छुआछूत, जातिवाद, क्षेत्रवाद पर आधारित इस संस्कृति को मूलतः ब्राह्मण संस्कृति तो कहा जा सकता है भारतीय संस्कृति नहीं. किसी देश की संस्कृति तो वहां के निवासियों का आइना होती है. समाज, साहित्य, कला, जीवन में जिसे भारतीय संस्कृति कहा...

सामाजिक रूपांतरण, नवजागरण और आर्य समाज की हिंदी सेवा/ डॉ. कर्मानंद आर्य / Karmanand Arya

हिंदी साहित्य के इतिहास में जिसे भारतेंदु युग कहा जाता है उसका प्रारंभ उन्नीसवीं सदी के चौथे चरण के साथ हुआ और उस काल में जिस साहित्य का निर्माण हुआ उस पर नवजागरण की उन प्रवृत्तियो का प्रभाव है जिसका प्रादुर्भाव भारत में उन्नीसवीं सदी के मध्य में शुरू हो चुका था. हिंदी पट्टी यानी उत्तर भारत में इन प्रवृत्तियों के उभार के पीछे स्वामी दयानंद सरस्वती और उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. बंगाल का भद्र लोक जिस तरह से राजा राममोहन राय के विचारों से प्रभावित था और सामाजिक रूपांतरण में अपना योगदान कर रहा था ठीक उसी तरह मध्य भारत में अनेक समाज सुधार के आन्दोलन मुखर रूप से इसी रुपान्तारण को बल दे रहे थे. इस काल में अनेक आर्य समाजी कवि, लेखक और साहित्यकार हुए जिसकी रचनाओं ने नवयुग को लाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हिंदी के समीक्षक यह मानते हैं कि इस युग में हमारे देश में राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक नवचेतना उत्पन्न हुई थी, जिससे पराधीन भारत के नागरिकों में पुनः स्वाभिमान, आत्मगौरव तथा आत्मविश्वास के भावों को जागृत किया था.    ...