बड़ी उम्मीद से लिख रहा हूँ मैं
जिसे तुमने अचानक मना कर
दिया
गिलहरियाँ जिनको तुम्हारे
साहचर्य से जीना था
उसे जिसे देख अनचाहे मुड़ गए
तुम्हारे कदम
उसकी जिसकी आँखे उम्मीद से
लाल हो गईं
वह जिसका कोई नहीं है तुम
जानते हो
जिसका भेड़िया प्रश्न
तुम्हारे आगे दुम हिलाता रहा
सदियों का संताप झेलनेवाले
गूंगों की भाषा बोलनेवाले
पपीहे
जूठन खाने वाले जानवर
तुम्हारे जूते की मरम्मत
करनेवाला मोची
तुम्हारे गाड़ी पर पोंछा
लगाने वाला लड़का
तुम्हारे बेटियों को स्कूल
ले जाने वाला रिक्शा
जिन्हें संसद की भाषा में
लिखना था इतिहास
अनचाहे संविधान पर कर दिए
हस्ताक्षर
वे सभी जो दलित वंचित पिछड़े
हैं
जिनकी निगाहें इलाज का सपना
तोड़ रहीं हैं
जो सर्दियों की रात में
तारों से ताश खेलते हैं
जिनकी निगाहों में शिक्षा
की सुई गोल घूमती है
सफ़ेद ग्लोब में जिनका घर
नजर नहीं आता
पांचसाला जादू जिनके आँचल
में दम तोड़ देता है
तुम्हारे आसपास की प्रकृति,
संरचना, बनावट, बुनावट
ठेले पर हिमालय बेचते बच्चे
देह का सौदा करती भूखी
देहें
बड़ी उम्मीद से लिख रहा हूँ
उनके बारे में भी सोचना
जो तुम्हारा साहचर्य चाहते
हैं
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