नाचो न इजाडोरा


आज आठ मार्च है. यानी कि महिला दिवस.उन्हीं लोगों केलिए लिखी गई एक कविता ...............

नाचो न इजाडोरा

जिस धुन की तलाश में निकले हैं हम
उस धुन की थाप पर गोल दुनिया रोज मिलती है
हर चीज बेधते हुए
एक नई सुबह होने से पहले
जैसे घुंघुरुओं से मिलती है तुम्हारी आवाज

ओहान पामुक तुम्हारे लिए लिखते हैं विनयपत्र
तुम्हारे प्रेम में खोये किसी प्रेमी की तरह बेअदब
किसी धर्म के लिबास में लिपटे हुए पत्र
तुम्हे बहुत अंदर तक ख़ुशी देते हैं

तुम धरती की तरह स्वभावतः नाचती हो
जैसे साइबेरिया के परिंदे नाचते हैं बेखबर
किसी रानी के सुंदर हाथों पर जैसे नाचते हैं चूड़ीवाले के हाथ
स्पर्श की कामना से भरे हुए

नुमायशी कोठियों के सर्द कुहरे तुम्हारी आह पर काँप जाते हैं
तुम्हारी नर्म देह की थिरकन रुकने का नाम नहीं लेती
तुम्हारा वर्तमान मुरझाए फूल की तरह खिला है
जिस दिन तुम्हारी थाप रुक जायेगी
धरती की सारी दूबें जल कर राख हो जायेंगी

इस देश की लड़कियां तुम सा मोम होना चाहती हैं
बाजारू क्रीम की घोषणा के बावजूद
फटी हुई एडियाँ सहलाती हुई
वे कल्पना की तरह उड़ना चाहती हैं किसी गुप्त आकाश में
जहाँ उड़कर जाती हैं समुद्री चीलें

जिन्होंने गरीबी जहालत भुखमरी देखी है
जिन्होंने बीमार पतियों की सेवा का व्रत विरासत में लिया है
जो जिन्दगी भर किसी घर में कैद रही हैं
जिनकी दुनिया पति की जुराबें ढूंढने में ख़त्म हो गई
वे तुम्हें टीवी में देख खुश होती हैं

नाचो न इजाडोरा अब कैमरे तुम्हारा पीछा नहीं करते
तुम्हारे लिए दुनिया के हरे मैदान खुल गए हैं
   
डॉ.कर्मानंद आर्य

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