मैं मनुवादी होना चाहता हूँ
मैं मनुवादी होना चाहता हूँ
कोई इस सुन्दर विषय पर लिखना ही नहीं चाहता. इस विषय की प्रासंगिकता ब्राम्हण
काल से लगातार बनी हुई है. अब तो ज्यादा ही प्रासंगिक है क्योंकि दलित-आदिवासी
साहित्य आजकल उभार पर है. ऱोज ही नई-नई दलित आत्मकथाएं लिखी जा रहीं हैं. हिंदी
में तो जातीय साहित्य भरा पड़ा है. लेखक अपनी जाति को दिमाग में रखकर किताबें लिखता
है.आप पूरा हिंदी साहित्य पढ़ लें. सब एक ही जाति ने लिखा है. हालाँकि अपवाद तो सब
जगह होते हैं. मैंने सोचा एक मैं ही होनहार
विरवान हूँ चलो हवा में तीर उछालता हूँ क्या पता कुछ टपक ही पड़े तथापि सावधानी
बरतनी भी जरुरी है अतः उल्टी कलम से लिख रहा हूँ. पता चला लेने के देने पड़ गए. फिर
भी इसे मैं पवित्र पाप की तरह ही ले रहा हूँ.
उस कटेगरी के लोग इसे न पढ़े जिनका आगे जिक्र आया है. जिसका कभी ह्रदय का
आपरेशन हुआ हो, सेक्युलर होने की बीमारी हो, अपनी जाति से स्वाभाविक घृणा हो या कभी
भी जातिदंश न झेला हो, समाज से जिनका बेहतर तालमेल ना हो. ऐसी ही नेकसलाह कमजोर
दिल किन्तु सुंदर स्त्रियों को भी दी जाती है हालाँकि यह मेरी व्यक्तिगत सलाह न
समझी जाए क्योंकि मुझे घर वापस जाना है. मैं कोई पंगा नहीं खड़ा करना चाहता की मुझे
अपने पद से इस्तीफा देना पड़ जाए बच्चे सांसत में पड जाएँ और पड़ोसन बात करना छोड़
दे. पता चले व्यंग्य की जगह इस्तीफा लिख रहे हैं. हेडक्वार्टर में लम्बी सुनवायी
चले फलतः कटघरे में खड़े किसी मर्द को घोड़े की तरह हँसना पड़े.
मैंने अपने किसी लंगोटिए यार से मुफ्त सलाह ली की मैं जातिवादी होना चाहता
हूँ. दोस्त हाथी की तरह कान हिलाते हुए बोला पगला गए हो धीरे धीरे मिमिआओ कौवे की
तरह काँव-काँव मत करो. जाति की बातें अकेले में की जाती हैं. जब आपको पता चले की
सामने वाला आपकी ही जाति का है और आपसे बड़ी हैसियत रखता है. जातिवादी सब हैं पर
तुम्हारी तरह ढिंढोरा पीट कर थोड़े. मैंने जोर का तर्क दिया जातिवादी बनने के बहुत
फायदे हैं यदि आप इसका व्याकरण समझ गए तो समझो आपकी लाटरी लग गई आप मुख्यमंत्री भी
बन सकते हैं. सब पर रोबदाब झाड़ सकते हैं. अधिकारी से बात मनवा सकते हैं. अपने नाते
रिश्तेदार को कहीं भी फिट करा सकते हैं. इतना ही नहीं उस समय लोग आपको जीजा जी भी
कहने को तैयार दीखते हैं. मैं तो जाति चालीसा लिखने की सोच रहा हूँ.
मैंने सोचा दोस्त की बात में रहस्य है. वैसे सारे दोस्त ज्ञानी होते हैं यदि
उनकी बात ठीक वैसे ही मान लो जैसे वे कहते हैं. न नुकुर किया तो समझ लो कह देगा
भाई दादा बनने की कोशिश मत करो दोस्त ही बने रहो. अब जब हम ऐसे घिसे पिटे मानसिकता
पर बात करेंगे तो कोई अच्छा थोड़े ही कहेगा. सब कहेंगे बहुत चला है प्रोफेसरी
दिखाने. बस केवल लेक्चर झाड़ना है चाहे इससे कुछ हो न हो. अब मेरी पीड़ा कोई कैसे
समझे. नाम के आगे एक टाइटल लगाने मात्र से काम बन या बिगड़ जाता है. बड़े-बड़े डील का
सेकण्ड्स में वारा-न्यारा हो जाता है. जाति के हिसाब से पद भी मिलता है. जाति सबका
काम निर्धारित करता है जैसे ब्राम्हण कभी रोड पर झाड़ू नहीं लगाता या दलित कभी मंदिर
में पूजा नहीं करा सकता चाहे दोनों में विपरीत गुण हो. लोग मिलने पर सबसे पहले यह
जानना चाहते हैं की अगले की जाति कौन सी है. आप कहाँ और किस मुहल्ले से हो. पूरा
नाम क्या है? मतलब नाम के आगे क्या लगाते हैं. बस उसी से आदमी की पूरी औकात पता लग
जाती है कि उसे कहाँ नाधना है.
यहाँ स्त्री जाति की बात तो हो भी नहीं रही है. कहते हैं स्त्रियों की कोई जात
नहीं होती. चलो कम से कम वो सेकुलर तो हुईं. खुशी हुई सरकार सहवास का समय सोलह
करने जा रही है. सरकार को लगता है बच्चे जल्दी बड़े हो रहें हैं. संसद ने अभी हाल
ही में बहुत सी नयी धाराएँ बनाई हैं जिसमें हँसने बोलने को अपराध माना गया है.
छेड़छाड़ से संबधित बिल पास किये हैं. महिला आरक्षण बिल भले ही न पास हुआ हो पर नारी सशक्तिकरण की पूरी
फोटो विज्ञापन में तो दिखती ही है. स्त्री को जातिवादी मानने से फर्क ही क्या पड़ता
है.
चलो खैर आजकल मजाक करते हुए भी डर लगता है. अब पुराने दिन नहीं रहे जब आप होली
के बहाने सारा रंग कहीं भी पोत देते थे. अब उसी दिन एक साहब बता रहे थे की जब
उन्होंने डिमांड पूरी नहीं की तो उनपर उत्पीड़न का मुकदमा दायर कर दिया गया. अब
छिपो किस बिल में छिपते हो. मुसहर पानी डाल डाल कर निकालेंगे. सहकर्मी से मजाक करो
तो कोई न कोई बुरा मान ही लेता है. यदि आप की सहकर्मी ज्यादा सुंदर हो तो कहना ही
क्या? शिकायत का मौका बढ़ जाता है लेकिन एक फायदा भी है काम में भी मन लगता है और
दिन अच्छा गुजार जाता है. मेरा मानना है की सठियाये हुए जवान ऐसे गलतियाँ किसी न
किसी बहाने से कर ही लेते हैं.
इंसान तो गलतियों का ही पुतला है. ठीक से गलती किया और मुस्करा कर सॉरी बोल
दिया. बोलने में क्या जाता है हिंदी में थोड़े ही कहना है की मैं अपने इस कृत्य के
लिए शर्मिंदा हूँ. पर यह जाति के मामले में नहीं चलता. लोग औकात पर ले लेते हैं.
मौका मिलते ही जाति दर्प में घर ही नहीं जलाते अस्मत भी लूट लेते हैं. पिटी हुई
जाति आजकल दलित जाति हो गई है. जिसकी सभी प्रकार की संपत्तियों को लोग सरकारी माँ
कर चलते हैं. जहाँ जी चाहा कुत्तों की तरह टांग उठा दी.
मान लिया आप ने गलती कर ही दी तो सफाई देते समय नौकर की तरह झाड़ू पोंछा लगाना
पड़ता है, अब नौकर की जात ही क्या? परत-दर-परत साफ करे जैसे प्रधानमंत्री की गाड़ी आ
रही हो. साफ नहीं किया तो सस्पेंड. झेलो जिन्दगी भर जिल्लत. गंदे रास्ते पर उनकी
गाड़ियों के पहिये नहीं डोलेंगे चाहे पूरा देश कूड़े का ढेर हो जाए मरे या भाड़ में चला
जाए. ठीक यहीं पता चलता है कि वे कोई कमजोर प्रधानमंत्री नहीं जिसको फेसबुक वाले
अधिकतर टैग करते रहते हैं. वह बहुत बोल्ड किस्म के इंसान हैं और केवल एक व्यक्ति
की ही बात मानते हैं. वह मरद ही कैसा जो खुद को कमजोर समझे.
हमारी आदत है की बनिए की तकड़ी हो गई है मारे बिना रहा नहीं जाता. कुछ अधिक के
फेर में छापा भले पड जाए पर मिलावट तो करनी ही है. अभी आज के ही अखबार में था की
कुछ लोग गाय की चर्बी से घी तैयार कर रहे है. कोई पहचान नहीं सकता चलो तैयार शुद्ध
देसी घी. चाहे देवता को अर्पित करो चाहे खाओ कोई मना करने वाला थोड़े ही है. देवता
भी चुपचाप भोग लगा लेते हैं फेरे में कौन पड़े.
कितनी सुंदर परिघटना है जिसके हिसाब से सारा खेल शुरू होता है लोग उसी के बारे
में सार्वजनिक बातें करते हुए हिचकिचाते हैं. प्रगतिशील लोग दुहाई देते हैं की
उनकी केवल उनके घर में नहीं चलती बाकी तो वो पूरी दुनिया का ठेका लेकर चलते हैं
अबकी बार वे जाति मिटाकर ही छोड़ेगे. चलो मैंने तो जाति-पाँति मिटाने की कसम तो
नहीं खाई है. मुझे तो यह समझ आता है की जो जितने जातिवादी हैं उन्होंने उतनी ही
उन्नति की है. इतिहास गवाह है हीनता की ग्रंथी पाली हुई जातियां कभी राजा नहीं
बनी. उन्होंने केवल सेवादार का काम किया ठीक इसके विपरीत जिन्हें अपनी जाति पर
गर्व है वे दुनिया के सामने छाती खोल कर खड़े हो गए और राजा बने. राजपूतों ने कभी
भी अपने बच्चों को यह सलाह नहीं दी की तुम पिटके आना उलटे कहा कि पीट कर आना बाद
में हम देख लेंगे.
दोस्त ने ऐसे मुंह फाड़ा जैसे रंगा सियार फाड़ता है. तो तुमने सारी दुनिया को
जातिवादी मान लिया. अब बताओ बाबा कामदेव, फलाने पापू की जाति क्या है? मैंने तर्क दिया लोग गुरु की जाति देखकर ही
दीक्षा लेते हैं. जैसे ब्राम्हण का गुरु ब्राम्हण, राजपूत का राजपूत और बनिए का
बनिया. क्या तुमने कोई हाई प्रोफाइल दलित बाबा देखा है जिसके आगे पीछे रूपसियाँ
घुमती हैं. दोस्त ने कहा गुरुओं के काले कारनामें, घोटाले, व्यभिचारों पर राजनीति
मत करो. बाबा लोगों की इन्द्रिय तो शिथिल होती है वो गलत काम कैसे कर सकते हैं
एकाध नित्यानंदों को छोड़कर. हालांकि इस तथ्य में आंशिक गड़बड़ी भी हो सकती है बाद
में उन्होंने जोड़ा. अब कबीर तो हैं नहीं जो कहते जो तू बाभन बभनी जाया आन बात काहे
न आया.
दोस्त ने कहा भाई इतनी देर से पिला रहा है अब कुछ खिला पिला दे. मैंने कहा ये
काम विदेशी कंपनियों का है. बात जातीय राजनीति की आयी तो मैंने कहा अब नेता की
जाति मत पूंछ लेना. क्योंकि उसका गणित जाति से उल्टा होता है. मान लो यदि ब्राम्हण
पार्टी है तो वह मान के चलती है की अपने वोट तो मिलेगे ही अन्य के लिए दूसरा जुगाड़
खोजो. उनके लिए पौवा पानी का इंतजाम करना ही पड़ेगा. उत्तरप्रदेश में जाकर देख लो. तो
क्या तुम भी अपने पुत्र को गद्दी देना चाहते हो? मैंने बच्चे की तरह झुनझुना हिला
दिया. अभी देश के गृहमंत्री मीडिया को बता रहे थे भारत में जाति-पाँति पाकिस्तान
से आया. क्योंकि कोई भी बुरी चीज वहीँ से आती है. Continew…….
कर्मानंद भाई मनुवाद पर अपने अच्छा लिखना शुरू किया अपने लेकिन मेरी एक अरदास है कि अपने ब्लॉग की वाल का बैकग्राउंड बदलिए इस कलर में अक्षर पढना मुहाल हो रहा है
जवाब देंहटाएंji....................
जवाब देंहटाएंVishay uttam hai lekin meri request yah hogi ki unki prashansha jarro kariye jo kuch aapwad shabhya samaj me hai aur es parampara ko nahi mante hain. Samanjashya mushkil hota hai..........
जवाब देंहटाएंमजा आ गया.
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi abhivyakti hai maine aapke dono abhivyakti (MAGHAR AND MANUWADI) padi hai.outstanding sir ji .....Fan ho gaya aapka....
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