मैं लिखता क्यों हूँ
मैं लिखता क्यों हूँ
एक सडसी है मेरे
हाथों में
तपा रहा हूँ गर्म
लोहा
लोहे पर चोट करूँगा
ताकि उसे कलम बना सकूँ
बना सकूँ माँ के हाथ
में रक्खी हुई बीड़ी
पिता के हाथों में
रक्खा हुआ फावड़ा
लोहा जो मेरी किताबों
में भरा पड़ा है
लोहा जो मेरी
अस्थियों में बहता है
लोहा जो मेरी सोच है
कोई एक और ठंडा लोहा
मुड़ता नहीं
टूट जाती हैं उसकी
किरचे
शिकायत नहीं
किसी बेरहम लोहे को खालिस
पीटने से क्या होगा
फौलाद होने तक उसे गल
जाने दो
उसके गलने से कईयों
की जिन्दगी आकार लेगी
जब लोहे की सांकलें
इतनी मजबूत हों
कि वंचित उससे बाहर न
आ पाए
तो काटी जा सकती हैं
अपराधी सांकलें
जब तुम्हारी कलमें
लोहे की हों तो तुम आत्मकथा लिख सकते हो
तुम्हारी आत्मकथा में
हो सकता है लोहे का दुःख
किसी जंग लगे लोहे की
तरह तुम्हारी प्रतिभायें गला दी जायेंगी
तुम्हें कहा जाएगा
तुम लीटर को मीटर में नहीं माप सकते
दोस्तों लोहे की
प्रेरणा से लिखता हूँ कविता
क्योंकि लोहे की तलवारों
से मैं शोषक का गला नहीं रेत सकता
कविता लिख सकता हूँ
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