रस्सी सुलग रही है
रस्सी सुलग रही है
हिंसा की भूमि में, अहिंसा का तांडव
क्यों बरगला रहे हो बुद्ध!
आओ देखो पटना के दलित होस्टल में
तुम पिट रहे हो, पीट रहे हैं तुम्हारे अनुयायी
लोमड़ियाँ सिर खुजा रही हैं
सत्ता की बिल्लियाँ हाथों में हथियार लिए घूम रहीं है
उनके नुकीले हथियार व्यर्थ हो गए हैं
उनसे चूहों का शोषण किया जा सकता है
उनसे क्रांति नहीं लायी जा सकती है
क्या तुम्हारा धर्म हिंसक दैत्यों का रक्षक था
तुमने अहिंसा की चादर डाल उन्हें बचा लिया
तुम्हारा अनुन्यायी राजा तुम्हारा सम्मान करता था
अतः उसने तुम्हारा भव्य महोत्सव मनाया
पटना के पास इलाके में सज गया है तुम्हारा मंदिर
आओ देखो ! पिटने के बाद करुणा कैसे पैदा होती है
आओ देखो युद्धक शांति का सुख
महामहिम! जल्दी आना
बची हुई रस्सी सुलग रही है
तुम्हें शांति का नोबेल मिल सकता है!
डॉ.कर्मानंद आर्य
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