सोनी सोढ़ी के लिए



दो युवतियाँ बिना निशान छोड़े गायब हो गईं हैं 
जैसे कश्मीर से गायब हो जाती थीं भेड़ें

आक्रोश बढ़ रहा है अपनी बेटियों की हिफाजत के लिए
हम तरीके खोज रहे हैं

हमारी बेटियां हमारी विरासत हैं
हमें अच्छा लगता है जंगल का कानून
जो जंगल की हिफाजत के लिए है

जंगल में हथियार बंद सिपाही बढ़ते जा रहे हैं
हर बार उन्हें लगता है हम गलत हैं
हम पराजित हो जायेंगे

हम पराजित हो जायेंगे, ख़त्म हो जाएगा हमारा खेल
उन्हें लगता है हमारा हौसला टूट रहा है
हमारी टुकड़ियों के पास खाने का पैकेट और पानी नहीं है

हमारी हिफाजत के लिए हत्या का हथियार लिए वे घूम रहे हैं
सबसे चिकनी खालों वाले बिल्ले

एक दिन टूटेगा उनका गुमान
जब हमारा खून गवाही देगा
हम भी लड़ रहे हैं अपने वाजिब हकों के लिए

ग्रेहाउंड, कोब्रा, स्कोर्पियन सिपाहियों से मिलती जुलती
उन शिकारियों की शक्लें जिनके हाथों में संगीने हैं
कभी-कभी बहुत निर्दोष लगते हैं

लगता है हममें और उनमें बहुत फर्क नहीं
वे हम लोगों की तरह गरीब और सताए हुए लोग हैं

वे मजलूम और सताए किसान के बेटे हैं
उनका जज्बा यहाँ आकर टूट जाता है
जब वे मेरी तरह जिन्दगी से ठान लेते हैं

वे जेल के अहाते में सजा पाए दो कैदी हैं
जो अन्याय के विराट तंत्र से लड़ रहे हैं

हम मारे जाएँ या वे
अंततः नुकसान तो गरीब का है

हम भी शान्ति चाहते हैं
ऐसा जब भी होने वाला होता है
अचानक एक कमजोर पुल टूट जाता है

डॉ.कर्मानंद आर्य

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