मेरे हाथ !
मेरे हाथ !
तानाशाह मुझे रौंदने की जुर्रत मत करना
दो हाथों के अलावा उग आये हैं
मेरे और कई हाथ
मेरे हाथों में आज कलम है, तलवार है
तराजू है, ताबूत की कुछ कीलें
हम मुग़ल नहीं, तलवारों वाले बौद्ध हैं
हम अहिंसा का मतलब समझ गए हैं
पकड़ ली गई है तुम्हारी साजिस
अगली बरसात से पहले
बरसेंगे हमारे हाथ
मशाल की तरह जलेंगी हमारी भुजाएं
खेत, खलिहान, गलियों में
जब वे फैले होंगे
एक सूरज का गला पकड़ बाहर खींच लायेंगे
हम एक सामानांतर सूर्य चाहते हैं
वह सूर्य जिसे तुम्हारे मुकुट ने गन्दा कर दिया है
हम अगली साँस तब लेंगे
जब टूट जाएगा तुम्हारा भ्रम तुम बहुत बड़े हो
हम जनेऊ की गाँठ खोलने आये हैं
आसमान से बहुत ऊँची चोटी पर तांडव करने
जब टूट जायेगी ये चट्टानें
और तुम उन चट्टानों में दफ्न हो जाओगे
हम जश्न नहीं मनाएंगे
हम तुम्हारी अस्थियों का चूरमा बनायेंगे
हम अपनी हार का बदला लेंगे
रक्त प्लावित मेरा चेहरा बस तुम्हें देखना चाहता है
हमें ठीक हो जाना है अपनी कमजोरियां ठीक करते हुए
मेरी संकल्पधर्मा आँखें मुटभेड का सपना देख रहीं हैं
क्या हमारी हंसियों की धार में तुम्हारी गर्दन नहीं समां सकती
क्या तुम्हारे जूते हमारे पांवों में नहीं आ सकते
मेरा प्यार तुम्हारी दीवारों में दफ्न है
उस दीवार के कोने में जहाँ तुम सोते हो
मेरी रखैल मेरा इन्तजार कर रही है
क्या तुम मेरी आँखों में भरी हुई लाली देख रहे हो
क्या तुम्हें खुद पर तरस आ रहा है
आओ देखो मेरे हाथ
जो हजारो हाथों में बदल गए हैं
डॉ. कर्मानंद आर्य
तानाशाह मुझे रौंदने की जुर्रत मत करना
दो हाथों के अलावा उग आये हैं
मेरे और कई हाथ
मेरे हाथों में आज कलम है, तलवार है
तराजू है, ताबूत की कुछ कीलें
हम मुग़ल नहीं, तलवारों वाले बौद्ध हैं
हम अहिंसा का मतलब समझ गए हैं
पकड़ ली गई है तुम्हारी साजिस
अगली बरसात से पहले
बरसेंगे हमारे हाथ
मशाल की तरह जलेंगी हमारी भुजाएं
खेत, खलिहान, गलियों में
जब वे फैले होंगे
एक सूरज का गला पकड़ बाहर खींच लायेंगे
हम एक सामानांतर सूर्य चाहते हैं
वह सूर्य जिसे तुम्हारे मुकुट ने गन्दा कर दिया है
हम अगली साँस तब लेंगे
जब टूट जाएगा तुम्हारा भ्रम तुम बहुत बड़े हो
हम जनेऊ की गाँठ खोलने आये हैं
आसमान से बहुत ऊँची चोटी पर तांडव करने
जब टूट जायेगी ये चट्टानें
और तुम उन चट्टानों में दफ्न हो जाओगे
हम जश्न नहीं मनाएंगे
हम तुम्हारी अस्थियों का चूरमा बनायेंगे
हम अपनी हार का बदला लेंगे
रक्त प्लावित मेरा चेहरा बस तुम्हें देखना चाहता है
हमें ठीक हो जाना है अपनी कमजोरियां ठीक करते हुए
मेरी संकल्पधर्मा आँखें मुटभेड का सपना देख रहीं हैं
क्या हमारी हंसियों की धार में तुम्हारी गर्दन नहीं समां सकती
क्या तुम्हारे जूते हमारे पांवों में नहीं आ सकते
मेरा प्यार तुम्हारी दीवारों में दफ्न है
उस दीवार के कोने में जहाँ तुम सोते हो
मेरी रखैल मेरा इन्तजार कर रही है
क्या तुम मेरी आँखों में भरी हुई लाली देख रहे हो
क्या तुम्हें खुद पर तरस आ रहा है
आओ देखो मेरे हाथ
जो हजारो हाथों में बदल गए हैं
डॉ. कर्मानंद आर्य
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें