वे छह लड़के एक लड़की 
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सिपाही अपने डंडे को चूम रहा है 
अपराधी होने की पूरी प्रक्रिया से गुजर कर आई हुई लड़की 
उन छह लड़कों के साथ पकड़ी गई है

यह बाइस्कोप नहीं, आसाराम वाली कल्पना की आँखे खोल 
बहुत भीतर तक निहारें 

चूँकि चूड़िया कमजोरी की निशानी हैं 
इसलीय उसने हाथ में देश की तरह कंगन पहन लिया है
माँ की पहनाई हुई तकड़ी कब की टूट गई है
पिता की झुकी कमर की तरह 

वह वैसी लुटेरन नहीं है जैसा गंगा तीरे होते हैं पण्डे
उसमें औरत होने के सारे गुण मौजूद हैं 
फिर भी वह छह लड़कों के बीच अकेली रहती है सुरक्षित

वह उनमें से किसी की बहन नहीं है 
वह है साथिन, संघतिया 

घायल की गति घायल जाने 
उसे भी मिलते हैं कमीने, आदर्शवाद की चादर पहने हुए संत 
अलग-अलग जगहों की सघन पहचान करने वाले नेता 
बड़ी कारों, बड़े ओहदों, बड़े आराम इत्मिनान से लैस 
वो सफ़ेद लिबास में घूम रहे पढ़े-लिखे लगने वाले लोग 
नए शिकारों की तलाश में 

हरामखोर, अय्याश, दो कौड़ी की ज़लील मानसिकता रखने वाले कुत्ते
भदेरणा, तिवारी, त्रिपाठी, कांडा वगैरह वगैरह
किस-किस का नाम ले जिसकी पूंछ उठाती है वही मांदादिखता है 

खैर, वह जिन छह लड़कों के साथ पकड़ी गई है
वे मेढकों के इर्द-गिर्द मछलियाँ नचाते 
देखते ही पास्को, वेदांता पर त्योरियाँ चढ़ाते 
जंगल के रखवाले आदिवासी हैं 

जिनका मानना है, जंगल उनका पिता है 
जंगल की धरती उनकी माँ, कोयला उनकी बहन 
पेड़ उनके भाई और वे जंगल के वीर सिपाही 

उनके हाथों में जो हथियार हैं वे जंगल की हिफाजत के लिए हैं 

सिपाही अब भी डंडे को चूम रहा है 
वे आदिवासी नहीं हैं नक्सली हैं 
मान लें या मनाना पड़ेगा...........

सतर्क भेड़ियों का देश
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वह बमुश्किल निकल ही पायी थी 
मुहाने पर खड़े भेड़िये सतर्क हो गए

दूध का कटोरा छूट गया हाथों से 
भय के कदम लड़खड़ा गिर गए

पत्ते हिले और छुप गए हवाओं में 
एक झाड़ी के चिल्लाने से पहले 

तार-तार टूट कर नदी खून में मिलकर बह गई 
कुछ सिवार के टुकड़े पानी से लिपट कर रोते रहे 

वक्त बोला पर चुप बैठे परिंदों ने 
पानी को सिर से गुजर जाने दिया

शोर मचा पढने सुनने वालों ने महसूस किया 
भेड़िये की बहने हंसकर चुप हो गईं 

जवान पिता ने अस्थियों को गले से लगा लिया 
टीवी में खबर आती रही भेड़िये सतर्क हो गए हैं

फिसलकर मेरी ओर आओ : खाली मकान

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पेड़ आते हैं नदियाँ आती हैं
पर्वत, पहाड़ सब आते हैं मेरे पास
तुम भी मेरे पास आओ
खाली मकान

तुम मेरे पास होते तो सुरक्षित रहती मेरी किताबें
तुम होते तो मैं भी घूमता हाट-बाजार
जंगल की बारिस आती भी तो क्या
मेरे टपरे से चूता निर्मल धार

कुछ छोटे छोटे फूल, सजाता अपनी क्यारी में
चाँद की तरह खेलता, बच्चे सा निहार लेता
तुम इतने दूर-दूर, मेरी तरफ आओ खाली मकान

तुम होते तो एकान्त का सपना बुनता
माँ की रसोई में बंटाता उसका हाथ
झाड़ू बुहारू कर, तुम्हें बना देता चिकना

तुम होते तो और जिम्मेदार हो जाता परिवार
मिल-बाँट काट लेते दुःख की रात
जब कभी आता तो कोई कहता ‘लौट कर बुद्धू घर को आये’

पीढ़ियों से हमने नहीं देखा हमारा मकान
जमीदार के बगीचे में रहता है मेरा बंधुआ परिवार
कोई नहीं आता हमारे पास
पेड़, नदी, पहाड़ सब आते हैं

फिसलकर तुम भी मेरी तरफ आओ : खाली मकान

श्मशान बाजार

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कोई न कोई खरीद रहा होगा
कोई न कोई बेच रहा होगा
किसी हरवाहे की मूंठ

कहीं न कहीं जल रही होगी
सखुए की हरी पत्तियां
कोई न कोई पका रहा होगा
चिता पर चावल

यह देश है जिसमें रहते हैं
बहुत सारे लोग
सिर्फ छब्बीस रूपये के मुवावजे में मरते हुए

बहुत सारे लोग जो निकल पड़ते हैं
मौत की तलाश में
बिना बीमा सत्ताईसवीं मंजिल पर
जिनके पावों में शनीचर
दिनरात भागता है

यह एक बाजार है
जहाँ हर गरीब की कीमत तय है
कोई एक है जो मंत्र पढ़ रहा है
कोई एक जो जला रहा है काया

एक कोई और जो देख रहा है
भूख और आग को जलते हुए

यह बाजार है यहाँ कम से कम
मरने की बाते नहीं हो सकती
बस हरवाहे की मूठ
काठ की जगह लोहे की हो जाए


तुलसीदास

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व्यवस्था के मारे हो तुलसीदास
भोगना तो पड़ेगा ही

लाइन लम्बी है
आया नहीं लेखपाल
आज बिजली फिर गायब है
कल आना

व्यवस्था तो ऐसे ही चलती है
ऐसे ही चलती है कोर्ट कचहरी 

तुम नहीं समझोगे मंडल कमंडल
तुम्हें पता होना चाहिए  
आरक्षित चिड़िया कैसे उडती है

दुःख की दुकान खुल गई है
सरकारी बाजार फैल गया है
बहुत मंहगा है खाना

यह सरकारी दुनिया है
यहाँ खाने-पीने की बात भी छुपकर करना

दलित-ब्राह्मण क्या कहा
दस कोस से आये हो
जातिप्रमाण-पत्र बनवाने

क्या दुखिया चमारिन ने बताया नहीं
कैसे होता है सरकारी काम

हालाँकि बनवा के क्या करोगे
प्रमाणपत्र से थोड़े ही मिलती है नौकरी


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